मुकेश कुमार मिश्र : आदिशक्ति माँ दुर्गा की आराधना से वातावरण भक्तिमय हो चुका हैं।चारों तरफ माँ की जयकार सुनाई दे रहा हैं। शारदीय नवरात्रा में कुंवारी कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माँ दुर्गा कुंवारी कन्या के रूप में ही अवतार लिए हैं। जो सर्वशक्तिमान हैं। खगडिया जिले के चर्चित सिद्धि पीठ चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर बिशौनी में कुंवारी कन्या पूजन कि परम्परा सदियों पुरानी है जिसे देखने के लिए मंदिर में भक्तजनों की अपार भीड़ उमड पडती हैं।
कहते हैं पंडित गण
चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर के पंडित डाक्टर प्राण मोहन कुंवर एवं आचार्य उत्कर्ष गौतम उर्फ रिंकु झा बताते हैं कि आठ वर्ष से कम उम्र की कुंवारी कन्याएं माँ दुर्गा के रूप में जानी जाती हैं।जो पूजनीय हैं। तथा माँ दुर्गा की साक्षात् कृपा उनके उपर विराजमान रहती हैं। नवमी के दिन मंदिर में करीब दो दर्जन से अधिक कुंवारी कन्या को भक्तजन नए कपड़े में सुशोभित करते हैं। एवं माँ दुर्गा की प्रतिमा के सामने कतार बद्ध कर पैरों पर जल फूल चढाया जाता हैं। तथा विधि विधान तरीके से कुंवारी कन्या का पूजन किया जाता हैं।
खोइछा भरने की परंपरा
कुंवारी कन्या को सिन्दुर का टीका लगाने के बाद खोइछा भरने की परंपरा है।कुंवारी कन्या को भक्तजन खोइछा में कई तरह के मिष्ठान एवं द्रव्य देते हैं। खोइछा भरने के लिये भी भक्तजनों की अपार भीड़ उमड पडती हैं।
हंसने के लिये करते हैं विनती
कुंवारी पूजन के अंतिम क्षण सैकड़ों महिला एवं पुरुष भक्तजन कन्या को हंसने के लिए विनती करती हैं। भक्तजनों की विनती पर कुंवारी कन्याएं हंसती हैं। कुंवारी कन्या की हंसी से मंदिर परिसर का वातावरण खुशहाल हो जाता हैं। इस दुर्गा रूपी कन्या से आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में भक्तजनों का सैलाब उमड़ पडता हैं। मंदिर में उपस्थित सभी भक्तजन कुंवारी कन्या से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कुंवारी कन्या पूजन को देखने के लिए नवमी के दिन इलाके के लोग पहुँचते हैं। बिशौनी गांव में शारदीय नवरात्रा के पावन अवसर पर प्रत्येक दिन घर-घर में कुंवारी कन्या एवं ब्रह्माण भोजन करवाने की परंपरा है।