सुपौल : (संतोष कुमार भगत \रवि रौशन) सुहागिनों के आस्था के रूप में मनायी जाने वाली चौठचंदा व पति के दीर्घायु के लिए पत्नी द्वारा किये जाने वाला पर्व तीज सुहागन महिलाओं का पावन त्योहार हरितालिका तीज आज पूरे बिहार में धूम-धाम से मनाई जा रही है। सुहागन महिलाओं के साथ-साथ कुंवारी कन्याएं भी सुंदर पति की चाह में हरितालिका तीज व्रत करती हैं। तीज को लेकर बाजारों में काफी चहल-पहल देखी गयी. तीज को लेकर अस्थायी दुकानों में भी अप्रत्याशित भीड़ लगी थी. वहीं फल मंडी में भी लोगों का जमावड़ा लगा रहा. हालांकि महंगाई के बावजूद रविवार दिन को बाजार में महिलाओं द्वारा पूजा के लिये हर प्रकार की सामग्री खरीदी गयी.
महिलाओं ने तीज का पर्व मनाया
4 सितम्बर को बिहार में तीज मनायी जा रही है । इसे हरितालिका तीज भी कहते हैं। जबकि नेपाली तथा हिंदी में तीज। देश के कुछ हिस्सों में कजली तीज और हरयाली तीज भी मनाई जाती है. नाम चाहे जो भी हो इस त्यौहार का उद्देश्य सिर्फ एक होता है, अखंड सौभाग्य की कामना. कुंवारी लड़कियां मन मुताबिक वर पाने के लिए भी ये व्रत रखती हैं.
तीज माने तीन, मतलब यह की तीज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं तथा कठिन निर्जल व्रत रखती हैं। तीज से एक दिन पहले नहा खा भी होती है । इस व्रत को करवाचौथ के समकक्ष माना जा सकता है पर इसकी अवधि तकरीबन दुगुनी होती है, व्रत अगले दिन पूजा के बाद ही तोडा जाता है। फिर भी महिलाओं का उल्लास कम नहीं होता। व्रती सुहागनें जब सोलह श्रृंगार करती हैं तो उनके चेहरे की चमक देखने लायक होती है।
इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। लेकिन हरितालिका अर्थ कुछ और ही है। हरितालिका शब्द “हरित “ और “आलिका” के समागम से बना है। यहाँ हरित का अर्थ अपहृत है और आलिका का अर्थ सहेली है। इसके बारे में मान्यता यह है की माँ पारवती ने “शैलपुत्री” के रूप में अवतार लिया था। नारद जी के कहने पर उनके पिता हिमालय ने उनका हाथ विवाह में भगवान विष्णु को देने का वचन दिया था। माँ पार्वती को जब अपने पिता के इस निर्णय का पता चला तो उन्होंने यह बात अपनी एक सहेली को बताई। उनका तो जन्म ही भगवान शिव के लिए हुआ था , इसलिए उनकी सहेली उन्हें घने जंगल में ले गयी ताकि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर सकें।