सुपौल/छातापुर (संतोष कुमार /सोनू ) : जल प्रदूषण की समस्या कहें या सरकारी उदासीनता, जल के अकूत भंडार वाले कोसी क्षेत्र में पेयजल का कारोबार जबरदस्त रूप से फलने-फूलने लगा है. बोतल बंद पानी पीना व घरों में भी मिनरल वाटर के केन उपयोग करना कोसी वासियों के लिये फैसन नहीं बल्कि मजबूरी बनती जा रही है. जल प्रदूषण की समस्या कहें या सरकारी उदासीनता, जल के अकूत भंडार वाले कोसी क्षेत्र में पेयजल का कारोबार जबरदस्त रूप से फलने-फूलने लगा है. बोतल बंद पानी पीना व घरों में भी मिनरल वाटर के केन उपयोग करना कोसी वासियों के लिये फैसन नहीं बल्कि मजबूरी बनती जा रही है. यहीं वजह है कि बोतल बंद पानी का कारोबार धीरे-धीरे यहां व्यवसायिक रूप धारण करता जा रहा है. प्रखण्ड मुख्यालय में हीं वर्तमान में कई वाटर प्यूरीफाईंग प्लांट स्थापित हो चुके हैं.कारोबार से जुड़े व्यवसायियों द्वारा वाटर प्लांट में तैयार शुद्ध पेयजल को छोटे-छोटे वाहनों से घरों व कार्यालयों तक आसानी से पहुंचाया जाता है. यही कारण है कि शुद्ध पेयजल की समस्या से जूझ रहे कोसी वासी इन बोतल व केन बंद पानी पर निर्भर होने लगे हैं.शहर के प्रमुख सड़कों व गलियों में अक्सर नजर आने वाले पानी के वाहन इसकी बढ़ती लोकप्रियता का परिचायक है. जल के विशाल भंडारण वाले इस क्षेत्र में अगर सरकार द्वारा पहल की जाय तो कोसी में पानी का बड़ा उद्योग स्थापित किया जा सकता है. इससे ना सिर्फ देश को पानी की उपलब्धता सुलभ होगी,बल्कि इस कारोबार से कोसी क्षेत्र आर्थिक रूप से संपन्न भी हो जायेगा. 

मात्र 10 फीट की गहराई में है पानी
गौरतलब है कि कोसी क्षेत्र को पौराणिक काल में मत्स्य क्षेत्र कहा जाता था. पानी की प्रचुर उपलब्धता के कारण यहां भारी मात्रा में मछली का उत्पादन होता था. दरअसल इस क्षेत्र को प्राकृतिक रूप से व्यापक जल स्रोत उपलब्ध हैं. कोसी, बागमती जैसी दर्जनों नदियों की वजह से कोसी के इलाके में सदियों से पानी का विशाल भंडार मौजूद हैं. हिमालय के ग्लेशियरों से निकलने वाली इन नदियों की वजह से कोसी के इलाके में जल स्तर काफी उंचाई तक विद्ययमान है.आलम यह है कि जिले के किसी भी हिस्से में मात्र 08 से 10 फीट जमीन खोदने से जल स्रोत प्राप्त हो जाता है. यही कारण है कि जहां भागलपुर, मुंगेर, जहानाबाद, पटना, दरभंगा जैसे जिलों में पानी प्राप्त करने के लिये 150 से 250 फीट गहरी खुदाई कर सब मर्सिबल पंप लगाना पड़ता है, वहीं कोसी क्षेत्र में चापाकल गाड़ने के लिये आज भी महज 10 फीट पाईप व 05 फीट फिल्टर का उपयोग किया जाता है. भारत में शायद ही कोई इलाका होगा जहां भू-तल से इतनी आसानी से जल प्राप्त हो रहा है.
यहाँ जल प्रदूषण की है समस्या
कोसी वासियों को प्राकृतिक रूप से पानी का अकूत भंडार प्राप्त है. बावजूद क्षेत्र में शुद्ध पेयजल की समस्या बनी हुई है. इसका प्रमुख कारण यहां पानी में व्याप्त प्रदूषण को माना जाता है. दरअसल कोसी अंचल में मौजूद पेयजल में आयरन की भारी मात्रा मौजूद है. वहीं क्लोरेन, फ्लोराईड व आर्सेनिक की समस्या भी बनी हुई है. पानी में मौजूद ये घातक रासायन जल को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं.यही वजह है कि प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त जल का उपयोग करने के कारण स्थानीय निवासी पेट के रोग सहित अन्य कई बिमारीयों से जूझते रहते हैं. सामाजिक विकास व लोगों में बढ़ती जागरूकता की वजह से संभ्रांत व संपन्न वर्ग ने इस प्रदूषित जल के बजाय घरों में फिल्टर व आरओ लगाना अथवा बोतल बंद पानी का सेवन प्रारंभ कर दिया है. हालांकि आज भी गरीबी से जूझ रहा गरीब तबका प्राकृतिक जल स्रोत के भरोसे ही जीवन बसर कर रहा है|