सहरसा( koshixpress desk ) इस बार समय से पहले न केवल प्रचंड गर्मी पद रही है बल्कि बड़े और सदानीरा जल श्रोत भी सूखने के कगार पर पहुँच गयी है। यह जल संकट समस्त प्राणियों के लिए सचेत होने का समय है। उक्त बातें युवा पर्यावरणविद भगवानजी पाठक ने कही। पर्यावरणविद् श्री पाठक ने कहा कि विगत चार दशक के अंदर परंपरागत जल श्रोत के प्रमुख आधार स्तम्भ कुँआ व तालाब के अनुपयोग के साथ-साथ उसकी भराई कर अस्तित्व को भी मिटा दिया गया है। जल संकट से उबरने के लिए ज्यादा से ज्यादा कुँआ व तालाब की खुदाई और शेष बचे कुँआ व तालाबों की उराही की सख्त जरुरत है।
सदानीरा जल स्रोत सूखने के कगार पर :
पहले गांवों में चापाकल से ज्यादा कुंओ की संख्या होती थी, लेकिन बढ़ती अव्यवहारिक विज्ञान ने ऐसे सभी जल स्रोतों को ख़त्म कर दिया है। अब नीजी कुँआ और तालाब के साथ-साथ सार्वजानिक कुँआ व तालाब को भी लोगो ने कही अतिक्रमण तो कंही कूड़ा-कचरा डालकर बेकार बना दिया है। जिसके उराही की जरुरत है। श्री पाठक ने कहा कि गांव व शहर में जल निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था ने भी जल संकट पैदा किया है। बोरिंग, चापाकल, सोखता इसके प्रमुख उदाहरण है। इस वजह से भूगर्भ जल के स्तर में भी भारी गिरावट आई है। भूगर्भ जल को बचाने के लिए वर्षा जल संचय से पूरा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हरेक साल मानसून के पहले अभियान के तौर पर अगर वर्षा जल संरक्षण की तैयारी कर लिया जाय तो न केवल भूगर्भ जल का अनावश्यक दोहन से बचा जा सकता है बल्कि स्वच्छ पेयजल का संकट से भी निबटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए मूल रूप से समाज, सरकार और सिविल सोसाइटी के लोगों को भी सामूहिक अभियान चलाकर किया जा सकता है। श्री पाठक ने कहा कि तथाकथित एनजीओ वाले वर्षा जल संरक्षण का योजना तो चलाते हैं, लेकिन वह धरातल पर नहीं, सिर्फ कागजी खानापूरी की जाती है। अभी ग्राम पंचायत चुनाव का समय है, जनता और जनप्रतिनिधि को भी पानी और पंचायत को मुद्दा बनाना चाहिए।
श्रोत-( वरीय पत्रकार संजय सोनी )